हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार इस दिन किया गया कोई भी जप-तप, हवन-यज्ञ, दान आदि कर्म अक्षय हो जाता है अर्थात् उसके पुण्य का कभी क्षय नहीं होता। इस दिन देवी लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु अर्थात् श्रीलक्ष्मीनारायण जी का पूजन किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इस अवसर पर भगवान कुबेर की पूजा-अर्चना भी की जाती है। पूजनोपरान्त घटदान अथवा उदकुम्भदान किया जाता है जिसका मन्त्र यहाँ प्रदान किया गया है।
1. लक्ष्मी मूल मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः।
मन्त्र अर्थ - ह्रीं एवं श्रीं बीज मन्त्र में अवस्थित हे देवी लक्ष्मी! आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।
2. महालक्ष्मी मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥
मन्त्र अर्थ - हे कमल में निवास करने वाली देवी कमला, हे कमल के आसन पर विराजमान माँ लक्ष्मी! श्रीं एवं ह्रीं बीजाक्षरों में विद्यमान देवी महा लक्ष्मी हम पर कृपा करें। आपको कोटि-कोटि नमस्कार है।
3. लक्ष्मी नारायण मन्त्र
ॐ श्री लक्ष्मीनारायणाय नमः।
मन्त्र अर्थ - हे प्रभो श्री लक्ष्मी नारायण! आपके पावन चरण-कमलों में मेरा बारम्बार नमन है।
4. कुबेर मन्त्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
मन्त्र अर्थ - हे यक्षों के स्वामी! आप सृष्टि के समस्त धन-सम्पदा के अधिपति हैं, हे भगवन! आपको शत्-शत् नमन है। हे प्रभो! मुझे धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि प्रदान करने की कृपा करें।
5. घटदान अथवा उदकुम्भदान मन्त्र
एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्माविष्णुशिवात्मकः।
अस्य प्रदानात्तृप्यन्तु पितरोऽपि पितामहाः॥
गन्धोदकतिलैमिश्रं सान्नं कुम्भं साक्षिणाम्।
पितृभ्यः सम्प्रदास्यामि अक्षय्यमूपतिष्ठतु॥
मन्त्र अर्थ - ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के रूप में इस धर्मघट का मैं दान करता हूँ, इस घटदान से मेरे पितृ एवं पितामह तृप्त हो जायें। मैं गन्धोधक, तिल, अन्न एवं दक्षिणा सहित घट दान कर रहा हूँ। यह दान पितरों हेतु अक्षय हो जाये।