श्री महालक्ष्मी मंदिर में माँ के तीन रूप श्री महासरस्वती विद्या की देवी, समृद्धि की देवी माँ महालक्ष्मी और समय और मृत्यु से मुक्ति देने वाली देवी श्री महाकाली विराजमान हैं।
महालक्ष्मी मंदिर का शिखर 55 फीट ऊँचा, 24 फीट चौड़ा और छत 54 फीट लंबी है। मंदिर बहुत ही बारीक नक्कासी के साथ द्रविड़ शैली में बनाया गया है।
मंदिर में स्थापित तीनों ही देवियों के विग्रह छः-छः फीट ऊँचे प्राचीन संगमरमर से तराशे गये है। मंदिर की संपूर्ण रचना जयपुर कला केंद्र से सम्वन्धित विशेषज्ञ मूर्तिकारों के मार्गदर्शन में की गई थी। जिनमें से सुमेरपुर के हेमराज सोमपुरा शिल्पकार अत्यधिक प्रसिद्ध थे। मंदिर को पूर्ण होने में 12 बर्ष का समय लगा, और यह पुण्य कार्य 15 फरवरी 1984 को तीर्थ स्वरूप स्वामी श्री घनश्यामजी आचार्य के हाथों से तीनों देवियों की प्राण प्रतिष्ठा पूजन के साथ संपन्न हुआ।
मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग में बारह संतों के चित्र दीवारों पर अंकित किए गये हैं जो क्रमशः संत दानेश्वर, संत तुकाराम, संत तुलसीदास, संत जलाराम, संत चैतन्य महाप्रभु, संत कबीर दास, संत सुर दास, संत सूरदास, श्री रामदास स्वामी, संत गुरु नानक, संत रामकृष्ण परमहंस, संत बसवेश्वर, तथा मीराबाई हैं। जिससे भक्तों को माँ के आशीर्वाद के साथ-साथ इन महान गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षाओं का भी ज्ञान मिल सके।
मंदिर के निर्माण का पूर्ण श्रेय स्वर्गीय श्री बंसीलाल रामनाथ अग्रवाल तथा माता शुशीलदेवी बंसीलाल अग्रवाल को ही जाता है, इनके अथक प्रयाशो और पुरुषार्थ का ही यह जीता जागता उदाहरण है।
मोगरा उत्सव के दौरान माता के विग्रहों को लाखों मोगरा के पुष्पों द्वारा सजाया जाता है।
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15 February 1984
तीनों देवियों की प्राण प्रतिष्ठा पूजन के साथ संपन्न।