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युगल गीत (Yugal Geet)


युगल गीत
श्रीमद भागवत के अन्तर्गत आने वाले गोपियों के पञ्च प्रेम गीत (वेणुगीत, युगल गीत, प्रणय गीत, गोपी गीत और भ्रमर गीत) इनमें से युगल गीत का वर्णन इस प्रकार है।
श्रीशुक उवाच
गोप्यः कृष्णे वनं याते तमनुद्रुतचेतसः ।
कृष्णलीलाः प्रगायन्त्यो निन्युर्दुःखेन वासरान् ॥१॥
श्रीगोप्य ऊचुः
वामबाहुकृतवामकपोलो
वल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम् ।
कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्ग
गोप्य ईरयति यत्र मुकुन्दः ॥ २ ॥

व्योमयानवनिताः सह सिद्धैर्
विस्मितास्तदुपधार्य सलज्जाः ।
काममार्गणसमर्पितचित्ताः
कश्मलं ययुरपस्मृतनीव्यः ॥ ३ ॥

हन्त चित्रमबलाः शृणुतेदं
हारहास उरसि स्थिरविद्युत् ।
नन्दसूनुरयमार्तजनानां
नर्मदो यर्हि कूजितवेणुः ॥ ४ ॥

वृन्दशो व्रजवृषा मृगगावो
वेणुवाद्यहृतचेतस आरात् ।
दन्तदष्टकवला धृतकर्णा
निद्रिता लिखितचित्रमिवासन् ॥५॥

बर्हिणस्तबकधातुपलाशैर्
बद्धमल्लपरिबर्हविडम्बः ।
कर्हिचित्सबल आलि स गोपैर्
गाः समाह्वयति यत्र मुकुन्दः ॥६॥

तर्हि भग्नगतयः सरितो वै
तत्पदाम्बुजरजोऽनिलनीतम् ।
स्पृहयतीर्वयमिवाबहुपुण्याः
प्रेमवेपितभुजाः स्तिमितापः ॥७॥

अनुचरैः समनुवर्णितवीर्य
आदिपुरुष इवाचलभूतिः ।
वनचरो गिरितटेषु चरन्तीर्
वेणुनाह्वयति गाः स यदा हि ॥८॥

वनलतास्तरव आत्मनि विष्णुं
व्यञ्जयन्त्य इव पुष्पफलाढ्याः ।
प्रणतभारविटपा मधुधाराः
प्रेमष्टतनवो ववृषः स्म ॥९॥

दर्शनीयतिलको वनमाला-
दिव्यगन्धतुलसीमधुमत्तैः ।
अलिकुलैरलघु गीतामभीष्टम्
आद्रियन् यर्हि सन्धितवेणुः ॥१०॥

सरसि सारसहंसविहङ्गाश्
चारुगीतहृतचेतस एत्य ।
हरिमुपासत ते यतचित्ता
हन्त मीलितदृशो धृतमौनाः ॥११॥

सहबलः स्त्रगवतंसविलासः
सानुषु क्षितिभृतो व्रजदेव्यः ।
हर्षयन् यर्हि वेणुरवेण
जातहर्ष उपरम्भति विश्वम् ॥१२॥

महदतिक्रमणशङ्कितचेता
मन्दमन्दमनुगर्जति मेघः ।
सुहृदमभ्यवर्षत्सुमनोभिश्
छायया च विदधत्प्रतपत्रम् ॥१३॥

विविधगोपचरणेषु विदग्धो
वेणुवाद्य उरुधा निजशिक्षाः ।
तव सुतः सति यदाधरबिम्बे
दत्तवेणुरनयत्स्वरजातीः ॥१४॥

सवनशस्तदुपधार्य सुरेशाः
शक्रशर्वपरमेष्ठिपुरोगाः ।
कवय आनतकन्धरचित्ताः
कश्मलं ययुरनिश्चिततत्त्वाः ॥१५॥

निजपदाब्जदलैर्ध्वजवज्र
नीरजाङ्कुशविचित्रललामैः ।
व्रजभुवः शमयन् खुरतोदं
वर्ष्मधुर्यगतिरीडितवेणुः ॥१६॥

व्रजति तेन वयं सविलास
वीक्षणार्पितमनोभववेगाः ।
कुजगतिं गमिता न विदामः
कश्मलेन कवरं वसनं वा ॥१७॥

मणिधरः क्वचिदागणयन् गा
मालया दयितगन्धतुलस्याः ।
प्रणयिनोऽनुचरस्य कदांसे
प्रक्षिपन् भुजमगायत यत्र ॥१८॥

क्वणितवेणुरववञ्चितचित्ताः
कृष्णमन्वसत कृष्णगृहिण्यः ।
गुणगणार्णमनुगत्य हरिण्यो
गोपिका इव विमुक्तगृहाशाः ॥१९॥

कुन्ददामकृतकौतुकवेषो
गोपगोधनवृतो यमुनायाम् ।
नन्दसूनुरनघे तव वत्सो
नर्मदः प्रणयिणां विजहार ॥२०॥

मन्दवायुरूपवात्यनुकूलं
मानयन्मलयजस्पर्शेन।
वन्दिनस्तमुपदेवगणा ये
वाद्यगीतबलिभिः परिवव्रुः ॥२१॥

वत्सलो व्रजगवां यदगध्रो
वन्द्यमानचरणः पथि वृद्धैः ।
कृत्स्नगोधनमुपोह्य दिनान्ते
गीतवेणुरनुगेडितकीर्तिः ॥२२॥

उत्सवं श्रमरुचापि दृशीनाम्
उन्नयन् खुररजश्छुरितस्त्रक् ।
दित्सयैति सुहृदाशिष एष
देवकीजठरभूरुडुराजः ॥२३॥

मदविघूर्णितलोचन ईषत्
मानदः स्वसुहृदां वनमाली ।
बदरपाण्डुवदनो मृदुगण्डं
मण्डयन् कनककुण्डललक्ष्म्या ॥२४॥

यदुपतिर्द्विरदराजविहारो
यामिनीपतिरिवैष दिनान्ते ।
मुदितवक्त्र उपयाति दुरन्तं
मोचयन् व्रजगवां दिनतापम् ॥२५॥

श्रीशुक उवाच
एवं व्रजस्त्रियो राजन् कृष्णलीलानुगायतीः ।
रेमिरेऽहः सु तच्चित्तास्तन्मनस्का महोदयाः ॥२६॥

Yugal Geet in English

Vamabahukrtavamakapolo, Valgitabhrurdhararapitavenum। Komalangulibhirashritamarg , Gopy Irayati Yatr Mukundah॥2॥
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