पितृ पक्ष - Pitru Paksha

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा (Purushottam Mas Mahatmya Katha)


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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य ?
पुराणों में अधिकमास अर्थात मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा है। उस कथा के अनुसार बारह महीनों के अलग-अलग स्वामी हैं पर स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को मलमास कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे अपना दुःख रोया।

भक्तवत्सल श्रीहरि उसे लेकर गोलोक पहुँचे। वहाँ श्रीकृष्ण विराजमान थे। करुणासिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूँ और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूँ। आज से तुम मलमास के स्थान पर पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे।

शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम अर्थात पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के समय जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। इस माह में तुलसी अर्चना करने का विशेष महत्व बताया गया है।

पुरुषोत्तम मास में कथा पढने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में धरती पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रान्ति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है।

पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी हैं, परन्तु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मङ्गल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।

दान, धर्म, पूजन का महत्व शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।

पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता है। इनमें विशेष रूप से सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।

पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद्भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ आपको पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है।
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