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श्री सूर्यमण्डलाष्टकम् (Shri Surya Mandala Ashtakam)


श्री सूर्यमण्डलाष्टकम्
॥ श्रीसूर्यमण्डलाष्टकम् ॥
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषेजगत्प्रसूतिस्थितिनाशहेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणेविरञ्चिनारायणशङ्करात्मने ॥1॥

यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालंरत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम्।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥2॥

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितंविप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥3॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यंत्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम् ।
समस्ततेजोमयदिव्यरूपंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥4॥

यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधंधर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
यत्सर्वपापक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥5॥

यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षंयदृग्यजुः सामसु संप्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वःपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥6॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्तिगायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यद्योगिनो योगजुषां च संघाःपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥7॥

यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितंज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥8॥

यन्मण्डलं विश्वसृजांप्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।
यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलचपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥9॥

यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मापरं धाम विशुद्धतत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥10॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्तिगायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्तिपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥11॥

यन्मण्डलं वेदविदोपगीतंयद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥12॥

मण्डलाष्टतयं पुण्यंयः पठेत्सततं नरः ।
सर्वपापविशुद्धात्मासूर्यलोके महीयते ॥13॥

॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

Shri Surya Mandala Ashtakam in English

Namah Savitre JagadekachakshusheJagatprasutisthitinashahetave। Trayimayaya TrigunatmadharineViranchi-narayana-shankaratmane
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