Haanuman Bhajan

कर्मानुसार सुख एवं दुःख का भोग - प्रेरक कहानी (Karm Anusar Sukh Evan Duhkh Ka Bhog)


कर्मानुसार सुख एवं दुःख का भोग - प्रेरक कहानी
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एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि प्रभु मैंने पृथ्वी पर देखा है कि जो व्यक्ति पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं, और जो सुख में हैं आप उसे दुःख नहीं देते है।
भगवान ने इस बात को समझाने के लिए माता लक्ष्मी को पृथ्वी पर चलने के लिए कहा और दोनों ने मनुष्य रूप धारण कर पति-पत्नी का रूप लिया और एक गांव के पास डेरा जमाया।

शाम के समय भगवान ने माता लक्ष्मी से कहा कि हम मनुष्य रूप में यहाँ आए हैं इसलिए यहाँ के नियमों का पालन करते हुए हमें यहाँ भोजन करना होगा। अतः मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूँ, तब तक तुम भोजन बनाओ।

जब भगवान के जाते ही माता लक्ष्मी रसोई में चूल्हे को बनाने के लिए बाहर से ईंटें लेने गईं और गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाकर चूल्हा तैयार कर दिया

चूल्हा तैयार होते ही भगवान वहाँ पर बिना कुछ लाए ही प्रकट हो गए।
माता लक्ष्मी ने उनसे कहा: आप तो कुछ लेकर नहीं आए, भोजन कैसे बनेगा।
भगवान बोले: लक्ष्मी ! अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। भगवान ने माता लक्ष्मी से पूछा कि तुम चूल्हा बनाने के लिए इन ईटों को कहाँ से लेकर आई
तो माता लक्ष्मी ने कहा: प्रभु ! इस गांव में बहुत से ऐसे घर भी हैं जिनका रख रखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है। उनकी जर्जर हो चुकी दीवारों से मैं ईंटें निकाल कर ले आई।

भगवान ने फिर कहा: जो घर पहले से खराब थे तुमने उन्हें और खराब कर दिया। तुम ईंटें उन सही घरों की दीवार से भी तो ला सकती थीं।
माता लक्ष्मी बोलीं: प्रभु ! उन घरों में रहने वाले लोगों ने उनका रख-रखाव बहुत सही तरीके से किया है और वो घर सुन्दर भी लग रहे हैं, ऐसे में उनकी सुन्दरता को बिगाड़ना उचित नहीं होता।

भगवान बोले: लक्ष्मी ! यही तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर है। जिन लोगों ने अपने घर का रख-रखाव अच्छी तरह से किया है यानि सही कर्मों से अपने जीवन को सुन्दर बना रखा है उन लोगों को दुःख कैसे हो सकता है।

मनुष्य के जीवन में जो भी सुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा सुखी है, और जो दु:खी है वो अपने कर्मों के द्वारा दु:खी है। इसलिए हर एक मनुष्य को अपने जीवन में ऐसे ही कर्म करने चाहिए, जिससे इतनी मजबूत व खूबसूरत इमारत खड़ी हो कि कभी भी कोई भी उसकी एक ईंट भी निकालने न पाए।
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