Shri Krishna Bhajan
गूगल पर भक्ति भारत को अपना प्रीफ़र्ड सोर्स बनाएँ

मुट्ठी भर सफल लोग - प्रेरक कहानी (A Handful of Successful People)


Add To Favorites Change Font Size
हर साल गर्मी की छुट्टियों में हरिराम अपने दोस्तों के साथ किसी पहाड़ी इलाके में माउंटेनियरिंग के लिए जाता था। इस साल भी वे इसी मकसद से ऋषिकेश पहुंचे।
गाइड उन्हें एक फेमस माउंटेनियरिंग स्पॉट पर ले गया। हरिराम और उसके दोस्तों ने सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी भीड़ होगी, हर तरफ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे।

एक दोस्त बोला - यार यहाँ तो शहर जैसी भीड़ है, यहाँ चढ़ाई करने में क्या मजा?

क्या कर सकते हैं, अब आ ही गए हैं तो अफ़सोस करने से क्या फायदा, चलो इसी का मजा उठाते हैं - हरिराम ने जवाब दिया।

सभी दोस्त पर्वतारोहण करने लगे और कुछ ही समय में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए।

वहाँ पर पहले से ही लोगों का तांता लगा हुआ था। दोस्तों ने सोचा चलो अब इसी भीड़ में दो-चार घंटे कैम्पिंग करते हैं और फिर वापस चलते हैं।
तभी हरिराम ने सामने की एक चोटी की तरफ इशारा करते हुए कहा - रुको-रुको! ज़रा उस चोटी की तरफ भी तो देखो, वहाँ तो बस मुट्ठी भर लोग ही दिख रहे हैं, कितना मजा आ रहा होगा, क्यों न हम वहाँ चलें।

“वहाँ!”, एक दोस्त बोला - अरे वहाँ जाना सबके बस की बात नहीं है, उस पहाड़ी के बारे में मैंने सुना है, वहाँ का रास्ता बड़ा मुश्किल है और कुछ लकी लोग ही वहाँ तक पहुँच पाते हैं।

बगल में खड़े कुछ लोगों ने भी हरिराम का मजाक उड़ाते हुए कहा - भाई अगर वहाँ जाना इतना ही आसान होता तो हम सब यहाँ झक नहीं मार रहे होते!

लेकिन हरिराम ने किसी की बात नहीं सुनी और अकेला ही चोटी की तरफ बढ़ चला और तीन घंटे बाद वह उस पहाड़ी के शिखर पर था। वहाँ पहुँचने पर पहले से मौजूद लोगों ने उसका स्वागत किया और उसे प्रोत्साहित किया।

हरिराम भी वहाँ पहुँच कर बहुत खुश था अब वह शांति से प्रकृति की ख़ूबसूरती का आनंद ले सकता था।

जाते-जाते हरिराम ने बाकी लोगों से पूछा - एक बात बताइये? यहाँ पहुंचना इतना मुश्किल तो नहीं था, मेरे विचार से तो जो उस भीड़-भाड़ वाली चोटी तक पहुँच सकता है वह अगर थोड़ी सी और मेहनत करे तो इस चोटी को भी छू सकता है, फिर ऐसा क्यों है कि वहाँ सैकड़ों लोगों की भीड़ है और यहाँ बस मुट्ठी भर लोग?

वहाँ मौजूद एक शिक्षक नवनीत बोला - क्योंकि ज्यादातर लोग बस उसी में खुश हो जाते हैं जो उन्हें आसानी से मिल जाता। वे सोचते ही नहीं कि उनके अन्दर इससे कहीं ज्यादा पाने का इरादा है, और जो थोड़ा पाकर खुश नहीं भी होते वे कुछ अधिक पाने के लिए खतरा नहीं उठाना चाहते। वे डरते हैं कि कहीं ज्यादा के चक्कर में जो हाथ में है वो भी ना चला जाए, जबकि हकीकत ये है कि अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा सी कोशिश की ज़रुरत पड़ती है! पर साहस ना दिखा पाने के कारण अधिकतर लोग पूरी लाइफ बस भीड़ का हिस्सा ही बन कर रह जाते हैं, और साहस दिखाने वाली उन मुट्ठी भर लोगों को लकी बता कर खुद को तसल्ली देते रहते हैं।

निष्कर्ष:
अगर आप आज तक वो अगला साहसी कदम उठाने से खुद को रोके हुए हैं तो ऐसा मत करिए क्योंकि, अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और कोशिश की ज़रुरत पड़ती है! खुद को उस कार्य को करने से रोकिये मत, थोडा सा साहस, थोड़ी सी हिम्मत आपको भीड़ से निकाल कर उन मुट्ठी भर लोगों में शामिल कर सकती है जिन्हें दुनिया भाग्यशाली कहती है।
यह भी जानें

Prerak-kahani Successful People Prerak-kahaniSuccessful Prerak-kahaniTraking Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता - सत्य कथा

श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता संत: मनुष्यों में सबसे प्रथम यह ग्रन्थ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मिथिला के परम संत श्रीरूपारुण स्वामीजी महाराज को।

तुलसीदास जी द्वारा भगवान् श्रीराम, लक्ष्मण दर्शन - सत्य कथा

चित्रकूटके घाट पर, भइ संतन की भीर । तुलसिदास चंदन घिसें, तिलक देन रघुबीर ॥..

आठवी पीढ़ी की चिन्ता - प्रेरक कहानी

आटा आधा किलो | सात पीढ़ी की चिंता सब करते हैं.. आठवी पीढ़ी की कौन करता है - एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया।

श्रमरहित पराश्रित जीवन विकास के द्वार बंद करता है!

महर्षि वेदव्यास ने एक कीड़े को तेजी से भागते हुए देखा। उन्होंने उससे पूछा: हे क्षुद्र जंतु, तुम इतनी तेजी से कहाँ जा रहे हो?

तुलसीदास जी द्वारा ब्राह्मण को जीवन दान - सत्य कथा

ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी, उसकी पत्नी उसके साथ सती होने के लिए जा रही थी। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी अपनी कुटी के द्वार पर बैठे हुए भजन कर रहे थे।

कर्ण की युद्ध में धर्म-नीति निष्ठा - प्रेरक कहानी

वह बाण बनकर कर्ण के तरकस में जा घुसा, ताकि जब उसे धनुष पर रखकर अर्जुन तक पहुँचाया जाए, तो अर्जुन को काटकर प्राण हर ले।

अर्जुन व कर्ण पर विचारों का सम्मोहन - प्रेरक कहानी

इसकी विपरीत कारण अर्जुन से कहीं अधिक वीर और साहसी होने पर भी दुविधा में पड़ा रहा। उसकी मान कुंती ने युद्ध से पूर्व यह वचन ले लिया की वह युद्धभूमि में अर्जुन के सिवाय और किसी भाई को नहीं मारेगा।...

Ganesh Aarti Bhajan - Ganesh Aarti Bhajan
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP