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कुम्भनदास (Kumbhandas)


भक्तमालः कुम्भनदास
वास्तविक नाम - श्री कुम्भनदासजी
गुरु - वल्लभाचार्य
आराध्य - श्रीनाथ जी
जन्म - 1499, चैत्र मास में 11वां दिन
मृत्यु - 1583, गोवर्धन
जन्म स्थान - जमुनावतो ग्राम, गोवर्धन, मथुरा
वैवाहिक स्थिति: विवाहित
भाषा - ब्रजभाषा
प्रसिद्ध - श्रीनाथ जी की भक्ति, भक्ति कविताएँ
श्री कुम्भनदासजी, क्षत्रिय थे और उनके पिता एक साधारण वर्ग के व्यक्ति थे और खेती करके अपना गुजारा करते थे। पैसे की कमी उनके जीवन में हमेशा परेशान करती रही लेकिन उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। प्रभु की भक्ति ही उनका एकमात्र गुण था। कुम्भ दास का परिवार बहुत बड़ा था और वे खेती करके ही अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।

कुम्भनदास का मानना ​​है कि सर्वोच्च भक्त भगवान का भक्त, एक आदर्श गृहस्थ और एक महान व्यक्ति थे, और साथ ही वह एक त्यागी और महान संतोष का व्यक्ति थे। उनके पवित्र चरित्र की विशेषता यह थी कि भगवान स्वयं प्रकट होकर उनके साथ सखा भाव की क्रीड़ाएं करते थे। वल्लभाचार्य जी ने उन्हें दीक्षा दी थी और वे उनके गुरु थे।

श्री कुम्भनदासजी की रचनाएँ
श्री कुम्भनदासजी ने संप्रदाय के 'राग-कल्पद्रुम', 'राग-रत्नाकर' तथा कीर्तन-संग्रहों में प्राप्त छन्द अदि रचनाएँ रचित किये थे, उनकी कुल छंदों की संख्या लगभग 500 है। बड़े-बड़े राजा-महाराजा आदि कुम्भनदास के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझते थे। वृंदावन के बड़े-बड़े प्रशंसक और संत उनके सत्संग की बड़ी इच्छा रखते थे। उन्होंने भगवद भक्ति की कीर्ति को हमेशा अक्षुण्ण रखा, आर्थिक संकट और दरिद्रता से इसे कभी कलंकित नहीं होने दिया।

Kumbhandas in English

Shri Kumbhandasji was a Kshatriya and his father was a man of an ordinary class and used to live by farming. Lack of money always troubled him in his life but he did not spread his hand in front of anyone. His only quality was devotion to the Bhagwan. The family of Kumbh Das was very big and he used to nurture his family only by farming.
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