भक्तमाल | सुरेश्वर
असली नाम - मंदन मिश्रा
अन्य नाम - श्री सुरेश्वराचार्य
आराध्य - भगवान शिव
गुरु -
आदि शंकराचार्य
जन्मतिथि - अश्वयुज शुक्ल एकादशी, विजयदशमी
भाषाएँ: संस्कृत
वैवाहिक स्थिति - अविवाहित
प्रसिद्ध - श्रृंगेरी शारदा पीठम के प्रथम पीठाधीश
श्री सुरेश्वराचार्य एक प्रसिद्ध विद्वान और दार्शनिक थे जिन्होंने सनातन वैदिक धर्म के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे आदि शंकराचार्य भगवद्पादाचार्य के सबसे प्रमुख शिष्यों में से एक थे जिन्होंने उन्हें श्रृंगेरी शारदा पीठम के प्रथम पीठाधिपति के रूप में सनातन धर्म और वेदांत के प्रसार की जिम्मेदारी सौंपी थी।
आदि शंकराचार्य के साथ उनकी मुलाकात एक गहन दार्शनिक बहस का कारण बनी, जिसके बाद उन्होंने शंकराचार्य को अपना गुरु स्वीकार कर लिया और संन्यासी बन गये तथा अपना नाम सुरेश्वराचार्य रख लिया। श्री सुरेश्वराचार्य, जिन्हें मूल रूप से मंदन मिश्रा के नाम से जाना जाता था वे अद्वैत वेदांत में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं, विशेष रूप से शंकराचार्य के तैत्तिरीय और बृहदारण्यक उपनिषदों के भाष्यों पर उनकी छंदात्मक टिप्पणियों या वार्तिकों के माध्यम से। इन कार्यों ने उन्हें अद्वैत परंपरा में "वार्तिककार" की उपाधि दिलाई है। श्री सुरेश्वराचार्य के प्रमुख दार्शनिक लेखन में नैष्कर्म्य सिद्धि, तैत्तिरीय उपनिषद भाष्य पर वर्तिका, बृहदारण्यक उपनिषद भाष्य पर वर्तिका, मानसोलासा, पंचीकरण वर्तिका और बालक्रीड़ा शामिल हैं।
श्री सुरेश्वराचार्य के कार्यों ने अद्वैत वेदांत को आकार देने, उनके गुरु आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं को स्पष्टता और गहराई प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके विद्वतापूर्ण योगदान का वेदांतिक मंडलियों में अध्ययन और सम्मान जारी है। श्री सुरेश्वराचार्य की जयंती अश्वमेध शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है, जो नवरात्रि उत्सव के साथ-साथ श्रृंगेरी में विशेष अनुष्ठान और प्रवचनों के साथ मनाई जाती है।
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