Shri Krishna Bhajan

आत्मारामी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष जगत को तीर्थरूप बना देते हैं - प्रेरक कहानी (Mahapurush Jagat Ko Tirtharoop Bana Dete Hain)


Add To Favorites Change Font Size
दो संन्यासी युवक यात्रा करते-करते किसी गाँव में पहुँचे। लोगों से पूछाः हमें एक रात्रि यहाँ रहना है। किसी पवित्र परिवार का घर दिखाओ।
लोगों ने बताया कि वह एक चाचा का घर है। साधु-महात्माओं का आदर सत्कार करते हैं। अखिल ब्रह्माण्डमां एक तुं श्रीहरि का पाठ उनका पक्का हो गया है। वहाँ आपको ठीक रहेगा। उन्होंने उन सज्जन चाचा का पता बताया।
दोनों संन्यासी वहाँ गये। चाचा ने प्रेम से सत्कार किया, भोजन कराया और रात्रि-विश्राम के लिए बिछौना दिया। रात्रि को कथा-वार्ता के दौरान एक संन्यासी ने प्रश्न किया- आपने कितने तीर्थों में स्नान किया है? कितनी तीर्थयात्राएँ की हैं? हमने तो चारों धाम की तीन-तीन बार यात्रा की है।

चाचा ने कहा- मैंने एक भी तीर्थ का दर्शन या स्नान नहीं किया है। यहीं रहकर भगवान का भजन करता हूँ और आप जैसे भगवत्स्वरूप अतिथि पधारते हैं तो सेवा करने का मौका पा लेता हूँ। अभी तक कहीं भी नहीं गया हूँ।

दोनों संन्यासी आपस में विचार करने लगेः ऐसे व्यक्ति का अन्न खाया! अब यहाँ से चले जायें तो रात्रि कहाँ बितायेंगे? यकायक चले जायें तो उसको दुःख भी होगा। चलो, कैसे भी करके इस विचित्र वृद्ध के यहाँ रात्रि बिता दें। जिसने एक भी तीर्थ नहीं किया उसका अन्न खा लिया, हाय! आदि-आदि।

इस प्रकार विचारते हुए वे सोने लगे लेकिन नींद कैसे आवे! करवटें बदलते-बदलते मध्यरात्रि हुई। इतने में द्वार से बाहर देखा तो गौ के गोबर से लीपे हुए बरामदे में एक काली गाय आयी... फिर दूसरी आयी... तीसरी, चौथी... पाँचवीं... ऐसा करते-करते कई गायें आयीं।
हरेक गाय वहाँ आती, बरामदे में लोटपोट होती और सफेद हो जाती तब अदृश्य हो जाती। ऐसी कितनी ही काली गायें आयीं और सफेद होकर विदा हो गयीं। दोनों संन्यासी फटी आँखों से देखते ही रह गये। वे दंग रह गये कि यह क्या कौतुक हो रहा है!

आखिरी गाय जाने की तैयारी में थी तो उन्होंने उसे प्रणाम करके पूछाः हे गौ माता! आप कौन हो और यहाँ कैसे आना हुआ? यहाँ आकर आप श्वेतवर्ण हो जाती हो इसमें क्या रहस्य है? कृपा करके आपका परिचय दें।

गाय बोलने लगी- हम गायों के रूप में सब तीर्थ हैं। लोग हममें गंगे हर.. यमुने हर... नर्मदे हर.. आदि बोलकर गोता लगाते हैं। हममें अपने पाप धोकर पुण्यात्मा होकर जाते हैं और हम उनके पापों की कालिमा मिटाने के लिए द्वन्द्व-मोह से विनिर्मुक्त आत्मज्ञानी, आत्मा-परमात्मा में विश्रान्ति पाये हुए सत्पुरूषों के आँगन में आकर पवित्र हो जाते हैं। हमारा काला बदन पुनः श्वेत हो जाता है।
तुम लोग जिनको अशिक्षित, गँवार, बूढ़ा समझते हो वे बुजुर्ग तो जहाँ से तमाम विद्याएँ निकलती हैं उस आत्मदेव में विश्रान्ति पाये हुए आत्मवेत्ता संत हैं।

तीर्थी कुर्वन्ति जगतीं! ऐसे आत्मारामी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष जगत को तीर्थरूप बना देते हैं। अपनी दृष्टि से, संकल्प से, संग से जन-साधारण को उन्नत कर देते हैं। ऐसे पुरुष जहाँ ठहरते हैं, उस जगह को भी तीर्थ बना देते हैं। जैन धर्म ने ऐसे पुरुषों को तीर्थंकर (तीर्थ बनाने वाले) कहा है।
यह भी जानें

Prerak-kahani Tirth Prerak-kahaniSanyasi Prerak-kahaniAatmarami Prerak-kahaniGao Mata Prerak-kahaniCow Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

धैर्य से काम लेने मे ही समझदारी है - प्रेरक कहानी

बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण करते हुए बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे। समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए..

बुरी परिस्थितियों में भी आशा नहीं छोड़ें - प्रेरक कहानी

उसने राजा से कहा कि यदि मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं एक साल में उसके घोड़े को उड़ना सीखा दूँगा।..

भगवान अपने बच्चों को वही देंगे, जो उत्तम होगा - प्रेरक कहानी

एक बार घोषणा हुई कि भगवान सेब बॉटने आ रहे है। सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगा कर खड़े, एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी

जब वैश्या ने कबीरदास जी की झोपड़ी में लगाई आग - प्रेरक प्रसंग

सतगुरु कबीरदास जी की कुटिया के पास एक वैश्या ने अपना कोठा बना लिया, एक ओर तो कबीरदास जी जो दिन भर मालिक के नाम कीर्तन करते और दूसरी और वैश्या जिसके घर में नाच गाना होता रहता

एक क्रिया, और सात्विक प्रतिक्रिया - प्रेरक कहानी

किसी गाँव में दो साधू रहते थे। वे दिन भर भीख मांगते और मंदिर में पूजा करते थे। एक दिन गाँव में आंधी आ गयी और बहुत जोरों की बारिश होने लगी।...

व्यर्थ - व्यर्थ की चिंतायें - प्रेरक कहानी

एक व्यक्ति बहुत दिनों से तनावग्रस्त चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा क्रोध में रहने लगा था। वह सदैव इस बात से परेशान रहता था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Bhakti Bharat APP