जीवन एक प्रतिध्वनि है - प्रेरक कहानी (Jeewan Ek Prati Dhwani Hai)


एक सब्जी वाला था, सब्जी की पूरी दुकान साइकिल पर लगाकर घूमता रहता था ।प्रभु, उसका तकिया कलाम था । कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये प्रभु। हरी धनियाँ है क्या? बिलकुल ताजा हैं प्रभु। वह सबको प्रभु कहता था। लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे।
एक दिन उससे किसी ने पूछा कि तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुझे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं और तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं ?

सब्जी वाले ने कहा: है न प्रभु, मेरा नाम भैयालाल है।

प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मजदूरी करता था, एक बार गाँव में एक नामी सन्त की कथा हुईं कथा मेरे पल्ले नहीं पड़ी, लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग में आकर फँस गई,
उन संत ने कहा: हर इन्सान में प्रभु का वास हैं, तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाये, बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नजर से देखना और पुकारना शुरू कर दिया वाकई चमत्कार होगया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये प्रभु रूप हो गया। ऐसे दिन फिरे कि मजदूर से व्यापारी हो गया सुख-समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गये, मेरे लिये तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप बन गईं।

लाख टके की बात! जीवन एक प्रतिध्वनि है आप जिस लहजे में आवाज देंगे पलटकर आपको उसी लहजे में सुनाईं देगी। न जाने किस रूप में मालिक मिल जाये अतः हर समय अच्छे से ही व्यवहार करना चाहिए।
Prerak-kahani Sabji Wala Prerak-kahaniLady Prerak-kahaniHawker Prerak-kahaniPrabhu Ji Prerak-kahaniVyapari Prerak-kahaniMajdoor Prerak-kahaniKatha Ka Asar Prerak-kahani
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!


* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

स्वर्ग, नरक सब अपने हाथ में ही है - प्रेरक कहानी

एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो गई, यमराज उसे लेने आये। महिला ने यमराज से पूछा: आप मुझे स्वर्ग ले जाएँगे या नरक।

रमणीय टटिया स्थान, वृंदावन - प्रेरक कहानी

स्थान: श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। विशाल भूखंड पर फैला हुआ है...

कर भला तो हो भला - प्रेरक कहानी

गुप्ता जी, पेशे से व्यापारी थे। कस्बे से दुकान की दूरी महज़ 9 किलोमीटर थी। एकदम वीराने में थी उनकी दुकान कस्बे से वहाँ तक पहुंचने का साधन यदा कदा ही मिलता था

बिना श्रद्धा और विश्वास के, गंगा स्नान - प्रेरक कहानी

इसी दृष्टांत के अनुसार जो लोग बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल दंभ के लिए गंगा स्नान करते हैं उन्हें वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है।

भगवान चढ़ाया गया भोग कैसे खाते हैं? - प्रेरक कहानी

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं? यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती?..