लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
स्वर्ग सम्राट हो या हो चाकर,
तेरे दर पे है दर्ज़ा बराबर,
तेरी हस्ती को हो जिसने जाना,
कोई आलम में आखिर नहीं है ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
दर बदर खाके ठोकर जो थककर,
आ गया गर कोई तेरे दर पर,
तूने नज़रों से जो रस पिलाया,
वो बताने के काबिल नहीं है ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
जीते मरते जो तेरी लगन में,
जलते-रहते विरह कि अगन में,
है भरोसा तेरा हे मुरारी,
तू दयालु है कातिल नहीं है ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
तेरा रस्ता लगा चस्का जिसको,
लगता बैकुण्ठ फीका सा उसको,
डूब कर कोई बाहर ना आया,
इस में भवरे है साहिल नहीं है ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
कर्म है उनकी निष्काम सेवा,
धर्म है उनकी इच्छा में इच्छा,
सौंप दो इनके हाथों में डोरी,
यह कृपालु हैं तंग दिल नहीं हैं ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
लाखों महफिल जहाँ में यूँ तो,
तेरी महफिल सी महफिल नहीं है ॥
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ॐ जय जगदीश हरे |
मधुराष्टकम्: धरं मधुरं वदनं मधुरं |
कृष्ण भजन |
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श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी