Shri Hanuman Bhajan

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 14 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 14)


कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 14
Add To Favorites Change Font Size
कार्तिक मास का आज, लिखूं चौदहवाँ अध्याय ।
श्री हरि कृपा करें, श्रद्धा प्रेम बढाएँ ॥
तब उसको इस प्रकार धर्मपूर्वक राज्य करते हुए देख देवता क्षुब्ध हो गये। उन्होंणे देवाधिदेव शंकर का मन में स्मरण करना आरंभ किया तब भक्तों की कामना पूर्ण करने वाले शंकर ने नारद जी को बुलाकर देव कार्य की इच्छा से उनको वहाँ भेजा। शम्भु भक्त नारद शिव की आज्ञा से देवपुरी में गये। इन्द्रादिक सभी देवता व्याकुल हो शीघ्रता से उठ नारद जी को उत्कंठा भरी दृष्टि से देखने लगे। अपने सब दुखों को कहकर उन्हें नष्ट करने की प्रार्थना की तब नारद जी ने कहा – मैं सब कुछ जानता हूँ इसलिए अब मैं दैत्यराज जलन्धर के पास जा रहा हूँ। ऎसा कह नारद जी देवताओं को आश्वासित कर जलन्धर की सभा में आये। जलन्धर ने नारद जी के चरणों की पूजा कर हँसते हुए कहा – हे ब्रह्मन! कहिए, आप कहाँ से आ रहे हैं? यहाँ कैसे आये हैं? मेरे योग्य जो सेवा हो उसकी आज्ञा दीजिए।

नारद जी प्रसन्न होकर बोले – हे महाबुद्धिमान जलन्धर! तुम धन्य हो, मैं स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर गया था, जहाँ दश हजार योजनों में कल्पवृक्ष का वन है। वहाँ मैंने सैकड़ो कामधेनुओं को विचरते हुए देखा तथा यह भी देखा कि वह चिन्तामणि से प्रकाशित परम दिव्य अद्भुत और सब कुछ सुवर्णमय है। मैंने वहाँ पार्वती के साथ स्थित शंकर जी को भी देखा जो सर्वांग सुन्दर, गौर वर्ण, त्रिनेत्र और मस्तक पर चन्द्रमा धारण किये हुए है। उन्हें देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इनके समान समृद्धिशाली त्रिलोकी में कोई है या नहीं? हे दैत्येन्द्र! उसी समय मुझे तुम्हारी समृद्धि का स्मरण हो आया और उसे देखने की इच्छा से ही मैं तुम्हारे पास चला आया हूँ।

यह सुन जलन्धर को बड़ा हर्ष हुआ। उसने नारद जी को अपनी सब समृद्धि दिखला दी। उसे देख नारद ने जलन्धर की बड़ी प्रशंसा की और कहा कि निश्चय ही तुम त्रिलोकपति होने के योग्य थे। ब्रह्माजी का हंसयुक्त विमान तुम ले आये हो और द्युलोक, पाताल और पृथ्वी पर जितने भी रत्नादि हैं सब तुम्हारे ही तो हैं। ऎरावत, उच्चै:श्रवा घोड़ा, कल्पवृक्ष और कुबेर की निधि भी तुम्हारे पास है। मणियों और रत्नों के ढेर भी तुम्हारे पास लगे हुए हैं। इससे मैं बड़ा प्रसन्न हूँ परन्तु तुम्हारे पास कोई स्त्री-रत्न नहीं है। उसके बिना तुम्हारा यह सब फीका है। तुम किसी स्त्री-रत्न को ग्रहण करो।

नारद जी के ऎसे वचन सुनकर दैत्यराज काम से व्याकुल हो गया। उसने नारद जी को प्रणाम कर पूछा कि ऎसी स्त्री कहाँ मिलेगी जो सब रत्नों में श्रेष्ठ हो।

नारद जी ने कहा – ऎसा रत्न तो कैलाश पर्वत में योगी शंकर के ही पास है। उनकी सर्वांग सुन्दरी पत्नी देवी पार्वती बहुत ही मनोहर हैं। उनके समान सुन्दरी मैं किसी को नहीं देखता। उनके उस रत्न की उपमा तीनों लोकों में कहीं नहीं है। देवर्षी उस दैत्य से ऎसा कहकर देव कार्य करने की इच्छा से आकाश मार्ग से चले गये।
यह भी जानें

Katha Kartik Mas KathaKartik KathaKartik Month KathaKrishna KathaShri Hari KathaShri Vishnu KathaISKCON Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

तेजादशमी कथा

वीर तेजाजी लोकदेवता, कृषि कार्यो के उपकारक देवता, प्रणवीर, युद्धवीर, सत्यवीर, परमार्थी, वीर शिरोमणि थे।

माँ धूमावती उत्पत्ति कथा

देवी धूमावती की पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार एक बार माँ पार्वती को बहुत तेज भूख लगी हुई थी। किंतु कैलाश पर उस समय कुछ न रहने के कारण..माँ धूमावती की मुद्रा

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे..

जगन्नाथ महाप्रभु का महा रहस्य

महाप्रभु जगन्नाथ को कलियुग का भगवान भी कहते है. पुरी (उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है.मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा

संतोषी माता व्रत कथा | सातवें बेटे का परदेश जाना | परदेश मे नौकरी | पति की अनुपस्थिति में अत्याचार | संतोषी माता का व्रत | संतोषी माता व्रत विधि | माँ संतोषी का दर्शन | शुक्रवार व्रत में भूल | माँ संतोषी से माँगी माफी | शुक्रवार व्रत का उद्यापन

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Ganesh Aarti Bhajan - Ganesh Aarti Bhajan
×
Bhakti Bharat APP