प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और तपस्या करते थे। क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश किया करते थे।
एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहाँ लेकर आना होगा।
तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा।
देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर ज्योति के रूप मे रहेंगे, तभी वह भी यहाँ रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में ब्रह्मा, विष्णु एवं स्वयं महेश लिंग रुप वास करने को तैयार हो गए. तथा अपने वचनानुसार गंगा नदी गौतमी के रूप में वहाँ बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है। दक्षिण दिशा की गंगा कही जाने वाली नदी गोदावरी का यही उद्वगम स्थान है।
त्र्यबंकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है।
Katha Jyotirling KathaTrimbakeshwar Jyotirling KathaShiv KathaPauranik Katha
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।