श्री बरसाने में प्रेम सरोवर के मार्ग पर एक समाधी बनी हुई है। जिसे हर कोई
गुलाब सखी (Gulab Sakhi) के चबूतरे के नाम से जानते है। एक भक्त का नाम गुलाब खान(Gulab Khan) था।
गुलाब खान एक गरीब मुसलमान थे।
गुलाब बरसाने में श्री जी के मंदिर में सारंगी बजाते थे। और जो भी पैसा मिल जाता था उससे अपना पेट पालते थे उनकी एक बेटी थी जिसका नाम राधा था। जब भजन कीर्तन गायन होता था तब उनकी बेटी राधा बड़े भाव विभोर होकर राधा रानी के सामने नृत्य करती थी।
जब कन्या बड़ी हुई तो लोगो ने कहना शुरू कर दिया गुलाब अब तो तेरी बेटी जवान हो गई है। अब इसके लिए कोई लड़का देखो। तो उस भक्त ने कहा कि
राधा रानी की बेटी है जब वो कृपा करेगी तो शादी हो जाएगी। मेरे पास इतना पैसा नही है कि मैं व्यवस्था कर सकूँ। लोगो ने कहा कि तुम लड़का तो देखो व्यवस्था हम कर देंगे। तो उस भक्त गुलाब ने एक लड़का देखा और बेटी का विवाह कर दिया। इस तरह बेटी अपनी ससुराल चली गई।
शादी के बाद गुलाब अपनी बेटी को भुला नहीं सके। खाना-पीना सब छूट गया।
ना सारंगी बजाई, ना समाज गायन में गए लेकिन एक दिन रात्रि को श्री जी के मंदिर के द्वार पर बैठे थे।
श्री राधा जी गुलाब सखी से बोली
ठीक रात्रि के 12 बजे उन्हें एक आवाज सुनाई दी। तभी एक छोटी सी बालिका उनकी ओर दौड़ती दिखाई दी और गुलाब सखी के पास आई और बोली कि बाबा, बाबा।
आज सारंगी नाय बजायेगो? मैं नाचूंगी। जब उन्होंने आँख खोल के देखा तो एक सुंदर बालिका खड़ी है। उसने पास रखी सारंगी उठाई और बजाना शुरू कर दिया। वो लड़की नृत्य करते हुए सीढ़ियों की और भागी। गुलाब ने अपनी सारंगी रख दी और राधा-राधा कहते हुए उस लड़की की और दौड़े।
लेकिन उसके बाद वो वहां किसी को नहीं दिखाई दिए। लोगो ने सोचा कि इसका खाना पीना छूट गया था कहीं ऐसा तो नही की पागल होकर मर गया हो।
गोस्वामी जी के सामने अचानक गुलाब सखी आई
महीनो निकल गए और लोग गुलाब खान को भूल गए। लेकिन एक दिन रात्रि में गोस्वामी जी राधा रानी को शयन करवा कर मंदिर की परिक्रमा में आ रहे थे। तो झाड़ी के पीछे से कोई निकला।
पुजारी ने पूछा- कौन है?
गुलाब खान बोले-
तिहारो गुलाब।
पुजारी ने कहा-
गुलाब तो मर गया है। उसने कहा की मैं मरा नहीं हूँ श्री जी की जिकुञ्ज लीला में उनके परिकर में सम्मिलित हो गया हूँ।
गोस्वामी जी ने पूछा- कैसे?
तो उसी समय गुलाब ने गोस्वामी जी के हाथ में पान की बिरि रखी जो अभी-अभी राधा रानी को शयन के समय भोग में गोस्वामी जी ने अर्पित की थी।
इतना कह कर वो झाड़ियों के अंदर चला गया और फिर कभी नहीं दिखा। आज भी बरसाने में गुलाब सखी जी की समाधि बानी हुई है, जिसे वहाँ के भक्त
गुलाब सखी का चबूतरा कहते हैं।