श्री राम दरबार में हनुमानजी महाराज श्री रामजी की सेवा में इतने तन्मय हो गये कि गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा!
सभी ने उठ कर उनका अभिवादन किया पर, हनुमानजी नहीं कर पाये। वशिष्ठ जी ने श्री रामजी से कहा कि राम गुरु का भरे दरबार में अभिवादन नहीं कर अपमान करने पर क्या सजा होनी चाहिए।
श्री रामजी ने कहा: गुरुवर आप ही बतायें।
वशिष्ठ जी ने कहा: मृत्यु दण्ड।
श्रीराम जी ने कहा: स्वीकार है।
तब श्रीराम जी ने कहा कि गुरुदेव आप बतायें कि यह अपराध किसने किया है?
बता दूंगा पर राम वो तुम्हारा इतना प्रिय है कि, तुम अपने आप को सजा दे दोगे पर उसको नहीं दे पाओगे।
श्रीराम जी ने कहा: गुरुदेव, राम के लिये सब समान हैं।
नहीं, राम! मुझे तुम्हारे उपर पर संशय नहीं है पर, मुझे दण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय है।
अत: यदि तुम यह विश्वास दिलाते हो कि, तुम स्वयं उसे मृत्यु दण्ड अपने अमोघ बाण से दोगे तो ही में अपराधी का नाम और अपराध बताऊँगा ।
श्रीराम जी ने पुन: अपना संकल्प व्यक्त कर दिया।
तब वशिष्ठ जी ने बताया कि, यह अपराध हनुमान जी ने किया है।
हनुमानजी ने भी स्वीकार कर लिया। तब दरबार में रामजी ने घोषणा की कि, कल सांय काल सरयु के तट पर, हनुमानजी को में स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूंगा।
हनुमानजी के घर जाने पर उदासी की अवस्था में माता अंजनी ने देखा तो चकित रह गयी। कि मेरा लाल महावीर, अतुलित बल का स्वामी, ज्ञान का भण्डार, आज इस अवस्था में?
माता ने बार बार पुछा: पर जब हनुमान चुप रहें तो माता ने अपने दूध का वास्ता देकर पूछा।
तब हनुमानजी ने बताया कि, यह प्रकरण हुआ है अनजाने में।
माता! आप जानती हैं कि, हनुमान को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं मार सकता, पर भगवान श्रीराम के अमोघ बाण से भी कोई नहीं बच सकता l
तब माता ने कहा कि, हनुमान, मैंने भगवान शंकर से, राम नाम मंत्र प्राप्त किया था, और तुम्हे भी जन्म के साथ ही यह नाम घुटी में पिलाया।
जिसके प्रताप से तुमने बचपन में ही सूर्य को फल समझ मुख में ले लिया था, उस राम नाम के होते हुये हनुमान कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता।
चाहे वो राम स्वयं भी हो।
राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और राम के अमोघ शक्तिबाण की शक्तियां महत्वहीन हो जायेगी।
जाओ मेरे लाल, अभी से सरयु के तट पर जाकर राम नाम का उच्चारण करना आरंभ करदो।
माता के चरण छूकर हनुमानजी, सरयु किनारे राम राम राम राम रटने लगे।
सांयकाल, राम अपने सम्पूर्ण दरबार सहित सरयुतट आये। सबको कोतुहल था कि, क्या राम हनुमान को सजा देंगे?
पर जब श्रीराम ने बार बार रामबाण, अपने महान शक्तिधारी, अमोघशक्ति बाण चलायें, पर हनुमानजी के ऊपर उनका कोई असर नहीं हुआ तो, गुरु वशिष्ठ जी ने शंका जतायी कि, राम तुम अपनी पुर्ण निष्ठा से बाणों का प्रयोग कर रहे हो?
तब श्रीराम ने कहा हाँ गुरूदेव मैं गुरु के प्रति अपराध की सजा देने को अपने बाण चला रहा हूँ, उसमें किसी भी प्रकार की चतुराई करके मैं कैसे वही अपराध कर सकता हूँ?
तो तुम्हारे बाण अपना कार्य क्यों नहीं कर रहे हॆ? तब श्रीराम ने कहा, गुरुदेव हनुमान राम राम राम की अंखण्ड रट लगाये हुये है।
मेरी शक्तिंयो का अस्तित्व राम नाम के प्रताप के समक्ष महत्वहीन हो रहा है। इससे मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है।
आप ही बतायें: गुरु देव ! मैँ क्या करुं?
गुरु देव ने कहा: हे राम! आज से मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे दरबार को त्याग कर, अपने आश्रम जा रहा हूँ। जहाँ राम नाम का निरंतर जप करूँगा।
जाते-जाते, गुरुदेव वशिष्ठ जी ने घोषणा की कि हे राम! मैं जानकर, मानकर, यह घोषणा कर रहा हूँ कि स्वयं राम से राम का नाम बड़ा है, राम नाम महा अमोघ शक्ति का सागर है।
जो कोई जपेगा, लिखेगा, मनन करेगा, उसकी लोक कामनापूर्ति होते हुये भी, वो मोक्ष का भागी होगा। मैंने सारे मंत्रों की शक्तियों को राम नाम के समक्ष न्युनतर माना है। तभी से राम से बड़ा राम का नाम माना जाता है। वो पत्थर भी तैर जाते हैं, जिन पर श्रीराम का नाम लिखा रहता है।
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