Shri Krishna Bhajan
गूगल पर भक्ति भारत को अपना प्रीफ़र्ड सोर्स बनाएँ

सुदामा जी को गरीबी क्यों मिली? - प्रेरक कहानी (Sudama Ji Ko Garibee Kyon Mili)


Add To Favorites Change Font Size
अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे। जितना धन उनके पास था किसी के पास नहीं था। लेकिन अगर भौतिक दृष्टि से देखा जाये तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे।
आखिर क्यों?
एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली। वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।

छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात में नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी।

यह सोचकर ब्राह्मणी चनों को कपडे में बाँधकर रख दिय। और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी।

देखिये समय का खेल, कहते हैं:-

"पुरुष बली नही होत है, समय होत बलवान।"

ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया में आ गये। इधर-उधर बहुत ढूँढा। चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं, इतने में ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी।

गाँव के सारे लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौडे, चोर वह पुटकी लेकर भागे। पकडे़ जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। (संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।)

गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है, गुरुमाता देखने के लिए आगे बढ़ीं, चोर समझ गये कोई आ रहा है, चोर डर गये और आश्रम से भागे। भागते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी। और सारे चोर भाग गये।

इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये। तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की "मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा।"

उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाड़ू लगाने लगी। झाड़ू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।

सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे (रोज की तरह)। गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी। और कहा बेटा ! जब वन में भूख लगे तो दोनों लोग यह चने खा लेना।

सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हें सारा रहस्य मालुम हो गया।

सुदामा जी ने सोचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्रीकृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टी दरिद्र हो जायेगी।

नहीं-नहीं मै ऐसा नही करुँगा, मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मैं ऐसा कदापि नही करुँगा। मैं ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा। और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।

दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया, चने खाकर। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नहीं दिया।
यह भी जानें
अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता - सत्य कथा

श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता संत: मनुष्यों में सबसे प्रथम यह ग्रन्थ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मिथिला के परम संत श्रीरूपारुण स्वामीजी महाराज को।

तुलसीदास जी द्वारा भगवान् श्रीराम, लक्ष्मण दर्शन - सत्य कथा

चित्रकूटके घाट पर, भइ संतन की भीर । तुलसिदास चंदन घिसें, तिलक देन रघुबीर ॥..

आठवी पीढ़ी की चिन्ता - प्रेरक कहानी

आटा आधा किलो | सात पीढ़ी की चिंता सब करते हैं.. आठवी पीढ़ी की कौन करता है - एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया।

श्रमरहित पराश्रित जीवन विकास के द्वार बंद करता है!

महर्षि वेदव्यास ने एक कीड़े को तेजी से भागते हुए देखा। उन्होंने उससे पूछा: हे क्षुद्र जंतु, तुम इतनी तेजी से कहाँ जा रहे हो?

तुलसीदास जी द्वारा ब्राह्मण को जीवन दान - सत्य कथा

ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी, उसकी पत्नी उसके साथ सती होने के लिए जा रही थी। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी अपनी कुटी के द्वार पर बैठे हुए भजन कर रहे थे।

कर्ण की युद्ध में धर्म-नीति निष्ठा - प्रेरक कहानी

वह बाण बनकर कर्ण के तरकस में जा घुसा, ताकि जब उसे धनुष पर रखकर अर्जुन तक पहुँचाया जाए, तो अर्जुन को काटकर प्राण हर ले।

अर्जुन व कर्ण पर विचारों का सम्मोहन - प्रेरक कहानी

इसकी विपरीत कारण अर्जुन से कहीं अधिक वीर और साहसी होने पर भी दुविधा में पड़ा रहा। उसकी मान कुंती ने युद्ध से पूर्व यह वचन ले लिया की वह युद्धभूमि में अर्जुन के सिवाय और किसी भाई को नहीं मारेगा।...

Ganesh Aarti Bhajan - Ganesh Aarti Bhajan
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP