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विनय पत्रिका: देवी स्तुति: पद 2 (Vinay Patrika: Devi Stuti: Pad 2)


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राग रामकली
जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायनी, भय-हरणि कालिका ।
मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरणमालिका ॥ १ ॥
वर्म, वर्मचर्म कर कृपाण, शूल-शेल-धनुषबाण,
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका ।
पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनी-शाकिनी-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका ॥ २ ॥

जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका ।
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका ॥ ३ ॥
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विनय पत्रिका

गोस्वामी तुलसीदास कृत विनयपत्रिका ब्रज भाषा में रचित है। विनय पत्रिका में विनय के पद है। विनयपत्रिका का एक नाम राम विनयावली भी है।

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