Shri Ram Bhajan

प्रथमेनार्जिता विद्या.. (Prathame Narjita Vidya..)


प्रथमेनार्जिता विद्या,
द्वितीयेनार्जितं धनं ।
तृतीयेनार्जितः कीर्तिः,
चतुर्थे किं करिष्यति ॥
सरल रूपांतरण:
प्रथमे नार्जिता विद्या,
द्वितीये नार्जितं धनम् ।
तृतीये नार्जितं पुण्यं,
चतुर्थे किं करिष्यति ॥

हिन्दी भावार्थ:
जिस व्यक्ति ने, पहले आश्रम (ब्रम्हचर्य) में विद्या अर्जित नहीं की। दूसरे आश्रम (गृहस्थ) में धन अर्जित नहीं किया। तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में पुण्य अर्जित नहीं किया। हे मनुष्य अब चौथे आश्रम (सन्यास) में क्या करोगे?
अर्थात- मनुष्य के जीवन में चार आश्रम होते है ब्रम्हचर्य, गृहस्थ ,वानप्रस्थ और सन्यास। जिसने पहले तीन आश्रमों में निर्धारित कर्तव्य का पालन किया, उसे चौथे आश्रम / सन्यास में मोक्ष के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता है।

Prathame Narjita Vidya.. in English

Prathame Narjita Vidya, Dvitiye Narjitam Dhanam...
यह भी जानें

Mantra Vedic MantraVed MantraStudent Mantra

अगर आपको यह मंत्र पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस मंत्र को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

मंत्र ›

मधुराष्टकम्: अधरं मधुरं वदनं मधुरं

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

अच्युतस्याष्टकम् - अच्युतं केशवं रामनारायणं

अच्युतं केशवं रामनारायण कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् । श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥..

सप्त चिरंजीवी - मंत्र

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ॥

श्री श्रीगुर्वष्टक

संसार - दावानल - लीढ - लोक - त्राणाय कारुण्य - घनाघनत्वम् । प्राप्तस्य कल्याण - गुणार्णवस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ॥ 1

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते, गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् नवरात्रि के दौरान माता रानी का सबसे ज्यादा सुना और पढ़ा जाने वाला संस्कृत श्लोक है

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी । बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥ त्रिशूल मुण्ड धारिणी..

श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम्

श्री युधिष्ठिर विरचितं | श्रीगणेशाय नमः । श्री दुर्गायै नमः । नगरांत प्रवेशले पंडुनंदन । तो देखिले दुर्गास्थान । धर्मराज करी स्तवन । जगदंबेचे तेधवा ॥

Aditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya Stotra
Ram Bhajan - Ram Bhajan
Bhakti Bharat APP