Shri Krishna Bhajan

प्रथमेनार्जिता विद्या.. (Prathame Narjita Vidya..)


प्रथमेनार्जिता विद्या,
द्वितीयेनार्जितं धनं ।
तृतीयेनार्जितः कीर्तिः,
चतुर्थे किं करिष्यति ॥
सरल रूपांतरण:
प्रथमे नार्जिता विद्या,
द्वितीये नार्जितं धनम् ।
तृतीये नार्जितं पुण्यं,
चतुर्थे किं करिष्यति ॥

हिन्दी भावार्थ:
जिस व्यक्ति ने, पहले आश्रम (ब्रम्हचर्य) में विद्या अर्जित नहीं की। दूसरे आश्रम (गृहस्थ) में धन अर्जित नहीं किया। तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में पुण्य अर्जित नहीं किया। हे मनुष्य अब चौथे आश्रम (सन्यास) में क्या करोगे?
अर्थात- मनुष्य के जीवन में चार आश्रम होते है ब्रम्हचर्य, गृहस्थ ,वानप्रस्थ और सन्यास। जिसने पहले तीन आश्रमों में निर्धारित कर्तव्य का पालन किया, उसे चौथे आश्रम / सन्यास में मोक्ष के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता है।

Prathame Narjita Vidya.. in English

Prathame Narjita Vidya, Dvitiye Narjitam Dhanam...
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