कन्हैया तेरे दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता,
विरह का है बड़ा सागर,
नहीं हमसे तरा जाता ॥
कन्हैया तू दयालु है,
मेरे ऊपर दया कर दे,
तुम्हारी चाह अग्नि में,
ये सारा तन जला जाता,
कन्हैया तेरें दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता ॥
तुम्हारे प्रेम ने मोहन,
मुझे पागल बनाया है,
गुजरती मुझपे जो जो भी,
नहीं हमसे कहा जाता,
कन्हैया तेरें दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता ॥
तुम्हारा रास्ता तकते,
गई पथरा मेरी अखियां,
ना हमसे इंतजारी का,
ये भारी दुख सहा जाता,
कन्हैया तेरें दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता ॥
है अद्भुत प्रेम का मारग,
ना आता ‘राम’ कहने में,
न मरते हमसे बनता है,
नहीं हमसे जिया जाता,
कन्हैया तेरें दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता ॥
भक्तिभारत भजन
कन्हैया तेरे दर्शन बिन,
नहीं हमसे रहा जाता,
विरह का है बड़ा सागर,
नहीं हमसे तरा जाता ॥
लेखक: श्री हरे राम बाबा
भजन को मलूक पीठ वृन्दावन वाले महाराज जी, रामानंद संप्रदाय के पवित्र विरक्त दीक्षित शै राजेंद्र दास जी महाराज ने गायन किया है।
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