पितृ पक्ष - Pitru Paksha

ह्रदय से जो जाओगे सबल समझूंगा तोहे: सूरदास जी की सत्य कथा (Hriday Se Jo Jaoge Sabal Samajhoonga Tohe)


ह्रदय से जो जाओगे सबल समझूंगा तोहे: सूरदास जी की सत्य कथा
Add To Favorites Change Font Size
एक बार सूरदास जी चलते-चलते मार्ग में एक गहरे गढ्ढे में गिर गए और निकलने के सारे प्रयास असफल हो गये। अपने कान्हा को ही पुकारने लगे, एक भक्त अपने जीवन में विपत्ति काल में प्रभु को ही तो पुकारता है। जैसे ही सूरदास जी ने कान्हा को याद किया, प्रभु भी उसकी पुकार सुने बिना नहीं रह पाए!
सच है जब एक भक्त दिल से पुकारता है तो यह टीस प्रभु के दिल में भी उठा करती है। उसी समय एक बाल गोपाल के रूप में वहाँ प्रकट हो गए, और प्रभु के पांव की नन्ही-नन्ही सी पैजनिया की छन-छन की आवाज सुनते ही सूरदास जी को समझते देर न लगी।

कान्हा उनके समीप आये और बोले अरे बाबा नीचे क्या कर रहे हो, लो मेरा हाथ पकड़ो और जल्दी से उपर चले आओ। जेसे ही सूरदास जी ने इतनी प्यारी सी मिश्री सी घुली हुई वाणी सुनी तो जान गए की मेरा कान्हा आ गया, और बहुत प्रसन्न हो गए, और कहने लगे की अच्छा कान्हा, बाल गोपाल के रूप में आ गए, कन्हाई तुम आ ही गए न?

बाल गोपाल कहने लगे अरे कौन कान्हा ? किसका नाम लेते जा रहे हो,जल्दी से हाथ पकड़ो और ऊपर आ जाओ, ज्यादा बातें न बनाओ।

सूरदास जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे: सच में कान्हा तेरी बांसुरी के भीतर भी वो मधुरता नहीं, माना कि तेरी बांसुरी सारे संसार को नचा दिया करती है लेकिन तेरे भक्तों का दुःख तुझे नचा देता है। क्यों कान्हा सच है न? तभी तो तू दौड़ा चला आया।

बाल गोपाल कहने लगे: अरे बहुत हुआ, पता नहीं क्या कान्हा-कन्हा किये जा रहे हो। मैं तो एक साधारण सा बालक ग्वाला हूँ, मदद लेनी है तो लो नहीं तो में तो चला, फिर पड़े रहना इसी गढ्ढे में।

जैसे ही उन्होंने इतना कहा सूरदास जी ने झट से कान्हा का हाथ पकड़ लिया और उस मंगलमय ब्रह्मसंस्पर्श से वे रोमांचित हो उठे
कहने लगे: कान्हा तेरा ये दिव्य स्पर्श, तेरा ये सान्निध्य, ये सुर अच्छी तरह जनता हूँ। मेरा दिल कह रहा है कि तू मेरा श्याम ही है।

इतना सुन कर, जैसे ही आज चोरी पकडे जाने के डर से भगवान बलात अपना हाथ छुड़ाकर जाने लगे तब सूर ने कहा:
हस्तमुच्छिद्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम् ।
हृदयात् यदि निर्यासि पौरुषं गणयामि ते ।

जिसका हिन्दी रूपांतरण छन्द इस प्रकार है:
बांह छुडाये जात हो, निबल जान जो मोहे
ह्रदय से जो जाओगे, सबल समझूंगा में तोहे

कुछ और जगहों पर इसका हिन्दी रूपांतरण निम्‍न प्रकार से है:
हाथ छुड़ाए जात हो, निवल जान के मोये ।
मन से जब तुम जाओगे, तब प्रवल माने हौ तोये ।

अर्थात - मुझे दुर्बल समझ यहाँ से बांह छुडा भाग जाओगे, लेकिन मेरे भक्ति रूपी मन से कभी नहीं निलकल पाओगे!

इस प्रकार भक्त-वात्सल्य भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम भक्त महात्मा सूरदास जी को इस विकट समस्या से उबारने के लिए स्वयं प्रगट हुए।
यह भी जानें

Prerak-kahani Surdas Ji Prerak-kahaniShri Krishna Prerak-kahaniBrij Prerak-kahaniBaal Krishna Prerak-kahaniBhagwat Prerak-kahaniJanmashtami Prerak-kahaniLaddu Gopal Prerak-kahaniIskcon Prerak-kahaniShri Shyam Prerak-kahani

अगर आपको यह prerak-kahani पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस prerak-kahani को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

Latest Prerak-kahani ›

मन को शांत रखने के उपाय - प्रेरक कहानी

सेठ उस साधु के पास के पास जाकर बोला, महाराज मेरे पास बहुत पैसा है, लेकिन मन की शांति नहीं है। साधु ने कहा कि, बेटा जैसा मैं करूं उसे चुपचाप देखते रहना...

ऋण तो चुकाना ही होगा - प्रेरक कहानी

भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?

मैं मरूंगा ही नहीं तो चूड़ियां फोड़ेगी कैसे - सत्य कथा

शारदा उनकी पत्नी रोने लगी तो रामकृष्ण ने आंखें खोलीं और कहा कि चुप, किसलिए रोती है? मैं न कहीं गया, न कहीं आया, मैं जहां हूं वहीं रहूंगा। तो शारदा ने पूछा, तुम्हारी देह के चले जाने के बाद मेरी चूड़ियों का क्या करना?

तुलसीदास जी द्वारा भगवान् श्रीराम, लक्ष्मण दर्शन - सत्य कथा

चित्रकूटके घाट पर, भइ संतन की भीर । तुलसिदास चंदन घिसें, तिलक देन रघुबीर ॥..

तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता - सत्य कथा

श्री रामचरितमानस के प्रथम श्रोता संत: मनुष्यों में सबसे प्रथम यह ग्रन्थ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मिथिला के परम संत श्रीरूपारुण स्वामीजी महाराज को।

तुलसीदास जी द्वारा ब्राह्मण को जीवन दान - सत्य कथा

ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी, उसकी पत्नी उसके साथ सती होने के लिए जा रही थी। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी अपनी कुटी के द्वार पर बैठे हुए भजन कर रहे थे।

भगवान कहाँ रहते हैं? - प्रेरक कहानी

एक ब्राह्मण था, वह घरों पर जाकर पूजा पाठ कर अपना जीवन यापन किया करता था। एक बार उस ब्राह्मण को नगर के राजा के महल से पूजा के लिये बुलावा आया।

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Om Jai Jagdish Hare Aarti - Om Jai Jagdish Hare Aarti
Bhakti Bharat APP