गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
सत् गुरुदेव श्रद्धा सुमन अर्पण:
मेरे गुरुदेव चरणों पर , सुमन श्रद्धा के अर्पित हैं ।
तेरी ही देन है जो है , तेरे चरणों पे अर्पित है ॥
न प्रीति है प्रतीति है , नहीं पूजन की शक्ति है ।
मेरा यह मन मेरा यह तन , मेरा जीवन समर्पित है ॥
तेरी इच्छाएँ हों मेरी मेरे सब कर्म हों तेरे ।
बना ले यंत्र अब मुझको मेरा कण कण समर्पित है ॥
तुम्ही हो भाव में मेरे विचारों में पुकारों में ।
तेरे चरणों पे हे गुरुवर मेरा सर्वस्व अर्पित है ॥
गुरु याचना:
हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिये ।
हूँ अधम आधीन अशरण, अब शरण में लीजिये ॥
खा रहा गोते हूँ मैं भवसिन्धु के मझधार में ।
आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में ॥
मुझमें है जप तप न साधन और नहीं कुछ ज्ञान है ।
निर्लज्ता है एक बाकी और बस अभिमान है ॥
पाप बोझे से लदी नैया भँवर में जा रही ।
नाथ दौड़ो, अब बचाओ जल्द डूबी जा रही ॥
॥ हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु ...॥
आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं ।
जन्म-दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मैं ॥
सब जगह "मंजुल" भटक कर, ली शरण प्रभु आपकी ।
पार करना या न करना, दोनों मर्जी आपकी ॥
॥ हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु ...॥
आप ही माता पिता प्रभु आप ही भगवान हो ।
सर्व सुख दाता सखा भ्राता हो सद्गुरु प्राण हो ॥
प्रभु आपके उपकार का हम ऋण चुका सकते नहीं ।
बिनु कृपा के शांति सुख का सार पा सकते नहीं ॥
॥ हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु ...॥
दीजिए वह भक्ति हमको सद्गुणी संसार में ।
मन हो मंजिल धर्म में अरू तन लगे उपकार में ॥
हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिये।
हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये ॥