Shri Ram Bhajan

श्री दंदरौआ हनुमान चालीसा (Dandraua Hanuman Chalisa)


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जय -जय -जय हनुमान कृपाला,
करो सदा संतन प्रतिपाला ॥
मंगल ,शनि को जो कोई जावै,
चोला तुम्हरे अंग चढ़ावै ॥

रीझो तुम जो अधिक सदाई,
मन इच्छा पूरण हो जय ॥

भक्तन हित कलयुग के राजा,
राम प्रताप तिलक तुम राजा ॥

राम भक्ति अग्रणी हमेशा,
सुमिरत तुमको मिटै कलेशा ॥

राम सदा वश में कर राखे,
हिरदय फार बताई राखे ॥

सोई यह मंदिर पर है राजे,
सौ फुट जाकी शिखर बिराजे ॥

राम जानकी लखन सुहाए,
दर्शन से पातक मिट जाये ॥

हनुमत मंदिर विलग सुहाई,
भूरि भब्यता सब मन भाई ॥

चमत्कार अपनों दिखलावे,
फोड़ा फुन्शी तुरत मिटावै ॥१०॥

कैंसर हो ,कैसी बीमारी,
भागत दूर भक्ति बलिहारी ॥

सुनकै नाम भक्त जन आवै,
मनोकामना पूरी पावै ॥

जय -जय -जय कह मुख ते बोलें,
आनंदमग्न मुदित हो डोलें ॥

भोले बाबा हू चल आये,
मंदिर तिनको विलग सुहाए ॥

पारवती है पुत्र समेता,
नन्दीगढ़ सह बसै निकेता ॥

निरख भक्त जय -जय मुख बोले,
तिन संग करते आप किलोलें ॥

सिंह वाहिनी दुर्गा माता,
सकल मनोरथ की है दाता ॥

मंदिर में है सोभा पाती,
अस्तभुजी स्वरुप दिखलाती ॥

निज भक्तन के काज बनाती,
जग जननी माता कहलाती ॥

थोड़े में ही खुश हो जाती,
भक्तन के मन सदा सुहाती ॥२०॥

भाई दयाल खेल के ऊपर,
स्वर्ग बनाया है लामू पर ॥

मध्य पीपल का बृच्छ सुहाए,
तैतिष कोटि देव सुख पावै ॥

ब्रह्मा जाकी जड़ बन आये,
त्वचा रूप विष्णू दर्शाये ॥

शंकर साखा रूप कहावै,
पत्र -पत्र सुर वाषा पावै ॥

नमो -नमो महिमा जग छाई,
पूजन ते नाना फल पाई ॥

यज्ञ भवन की सोभा न्यारी,
करत हवन तहँ जनता सारी ॥

ऐसो सुन्दर थल सुखदाई,
निरखत गद -गद तन हो जाई ॥

संस्क़ृतभाषा का विद्यालय,
वेद -ज्ञान का है देवालय ॥

ध्वनि सुन तिनकी देव विमोहे,
भाषा देव जगत जन जोहे ॥

गौ माता है सब सुख दाता,
भारत माँ से जिनका नाता॥३०॥

पालन -पोषण सबन सुहाई,
गौशाला सोई यहाँ बनाई ॥

दंदरौआ धाम सुहावै,
यश सुन जग जन दौरे आवै ॥

मनोकामना पूरण पावै,
आप सबै चरनन सिर नावै ॥

राज भोग भंडार लगावै,
साधू संत प्रसादी पावै ॥

पुरुसोत्तम बाबा मन भाई,
जिनकी कृपा महंती पाई ॥

रामदास जी अब अधिकारी,
बलिहारी जय -जय बलिहारी ॥

जिला भिंड में धाम सुहाए,
दतिया ग्वालियर निकट बतावै ॥

मौ - मेहंगांव सड़क में आवै,
मंदिर तक वाहन सब जावै ॥

एक मील तंह से है दूरी,
मोटर सड़क पहुँच गई रूरी ॥

यह चालीशा उन्हें सुनावै,
दंदरौआ धाम सुहावै ॥४०॥
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